ज्योतिष-सिद्धान्त की क्लिष्ट गणित-गुत्थियों को समझना, संहिता-ग्रंथों को पढ़ना, हरेक के वश की बात नहीं। इसी प्रकार से सामुद्रिक शास्त्र एवं हस्तरेखाओं के सूक्ष्म अध्ययनपूर्वक फलादेश भी, कोई आसान प्रक्रिया नहीं है। आज के युग में केवल अंकों द्वारा भविष्य जानने की प्रक्रिया एक बहुत ही सहज, सरल व चमत्कारी विद्या है। इस विद्या को भली-भांति समझने के बाद आप किसी भी अनजान जातक का भविष्य उसकी जन्म तारीख से, विवाह की तारीख से, उसके नाम से, उसके जीवन की महत्वपूर्ण घटना से तत्काल बतलाकर अनजान-से-अनजान व्यक्ति को चमत्कृत कर सकते हैं। संसार की प्रत्येक वस्तु संख्या की सीमा में आती है। सधर्मी वस्तुएं एवं अंक एक-दूसरे को खींचते हैं, और विधर्मी वस्तुओं व विरोधी अंक-संख्या में विकर्षण व शत्रुता का भाव बना रहेगा। विज्ञान-सम्मत इस बात को हमारे जीवन की वर्ष भर की घटनाओं के साथ घटाकर देखेंगे, तो हम पाएंगे कि अंक हमारे दैनिक जीवन का अभिन्न अंग हैं।
अधिक दूर क्यों? यदि हम स्वयं के जीवन को, मूलांक व भाग्यांक के माध्यम से टटोलेंगे तो अंक-विद्या के आश्चर्यजनक परिणाम से हम स्वयं चमत्कृत हो जाएंगे। अंकों की गणना 1 से प्रारम्भ होकर 9 पर समाप्त हो जाती है। 9 के बाद सभी अंक इस अंक माला की पुनरावृत्ति के होते हैं। अंक 10, अंक (1+0) 1 की पुनरावृत्ति है। क्योंकि शून्य (Zero = 0) को अंकों में स्थान नहीं दिया गया। अंक 11 में दोनों अंकों को जोड़ने पर 2 की संख्या प्राप्त होती है। अंक 12 तीन की, 13 चार की पुनरावृत्ति है। अंक 19 में फिर 1 तथा 9 के योग से 10 प्राप्त होता है जो पुनः 1 की पुनरावृत्ति है। अंक 20 पुनः अंक 2 की पुनरावृत्ति है। जिस प्रकार संगीत के सात मूल सुरों से समस्त राग-रागिनियों की रचना हुई है ठीक उसी प्रकार से अंकों की पुनरावृत्ति का क्रम अनन्त है पर मूल शक्ति 9 तक ही सीमित है।
वैसे तो अंक-विद्या पर अनेक प्रकार की पुस्तकें बाजार में उपलब्ध हैं, परन्तु प्रस्तुत पुस्तक में हमने आम पाठकों के मनोविज्ञान को समझते हुए अंक-विद्या को सरलतम विधि से समझाने का प्रयास किया है। अंकों के रहस्यमय चित्र, जिनमें अंकों का मानवीकरण किया गया है, आज से करीब तीन हजार वर्ष पुराने हैं और पाठकों के सामने पहली बार प्रस्तुत हो रहे हैं। इजिप्सियन एवं मिश्रवासियों ने अंकों के इन चमत्कारों को आत्मसात किया। भारत की यह प्राचीन विद्या दूर विदेशों में अलग ढंग से फैली एवं फली-फूली। पिरामिड संस्कृति के अनन्य प्रेमी मिश्रवासियों ने अंकों का अपने ढंग से मानवीकरण किया। उनके चित्र बनाये। पाश्चात्य जगत में ये चित्र ताश के 52 पत्तों तक सीमित रहे। हमने मिश्र जाकर ढूंढे, तो हमें कुल 78 चित्र प्राप्त हुए। जिन्हें यहां प्रस्तुत कर रहे हैं। अंकों का प्रश्नविद्या से सम्बन्ध, नष्ट वस्तु प्रकरण, पिरामिड अंक एवं कुछ ऐसे अध्याय इस पुस्तक में जोड़े हैं। जिससे हमारा यह दावा तो नहीं, किन्तु पूर्ण विश्वास है कि इस पुस्तक को पढ़ने के बाद व्यक्ति अंक-विद्या का पारंगत विद्वान् हो जाएगा।