नाम के पहले ही अक्षर के भीतर व्यक्ति का पूरा व्यक्तित्व छिपा होता है। व्यक्ति के नाम के प्रथम अक्षर से राशि निकाल कर फलादेश करना भारतीय ज्योतिष की अर्वाचीन पद्धति है। पाश्चात्य विद्वानों ने भी नाम के अक्षर एवं उसके महत्त्व को समझा। उनके मतानुसार किसी भी अनजान व्यक्ति का भी चरित्र-चित्रण नाम का प्रथम अक्षर मालूम होने पर किया जा सकता है।
भारतीय वाड्मय में व्यक्ति के नाम के प्रभाव ने गहरी छाप छोड़ रखी है। ऋषियों में वशिष्ठ, पराशर, गौतम, वराहमिहिर, शंकराचार्य आदि अनेक ऋषि हो गए कि जिनके नाम से वंश-परंपरागत, पीढ़ियां आज भी चल रही हैं। इसी प्रकार राजाओं की श्रृंखला में इंद्र, विक्रमादित्य, चंद्रगुप्त वगैरा अनेक राजा हो गए, जिनके नामों का प्रचलन इतना चला, कि कौन-सा इंद्र या विक्रमादित्य किस काल में हुआ, इसका-संशय आज भी इतिहासकारों में बना हुआ है।
पाश्चात्य जगत में भी एडवर्ड, एलिजाबेथ, हेनरी लुई, जार्ज एवं पोप के नाम इतने अधिक प्रचलित हो गए कि प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ एवं दशम से लेकर 108 तक की श्रृंखलाएं चल पड़ी। अक्षरों का विशिष्ट समूह नाम की संज्ञा से अभिहित होता है। नामाक्षरों की दुनिया में कमी नहीं परंतु पौर्वात्य एवं पाश्चात्य जगत ने नामाक्षरों के महत्त्व को अलग-अलग ढंग से स्वीकार किया है। यहां हम केवल अंग्रेजी वर्णमाला, एवं उस पर आधारित रहस्य एवं उसके महत्त्व का अध्ययन करेंगे।
एक यह भी तथ्य हाथ लगा कि जिसके भी नाम के पीछे श्राजश् शब्द आता है वह अपने आप में मस्त रहने वाले अपने स्वयं के स्वामी होते हैं। दूसरों के अधीन में रहना इन्हें जरा भी पसंद नहीं। यदि उचित अवसर मिल जाए तो यह राजा तुल्य ऐश्वर्य को भोगते हैं। यह लोग अगले क्षण क्या करने जा रहे हैं या क्या करेंगे, इसका पता उनके निकटतम परिजनों अर्थात पत्नी व पुत्र को भी नहीं चलता। सुखराज, लेखराज, भोजराज, पुखराज, हरकराज, मेघराज, करणराज, देवराज, देशराज, धनराज, धर्मराज, नटराज, प्रेमराज, वनराज, ऋषिराज, हेमराज, कुछ ऐसे ही नाम हैं जिनका अध्ययन करने पर उनकी इस प्रकृति का सहज में ही पता चल जाएगा ।
1. जिस नाम को आप रख रहे हो, जहां तक हो सके उसे अपनी जाति, वर्ग एवं गुण के अनुसार रखें। अशुद्ध बिगड़े हुए रूप एवं जाति से हटकर नाम न रखें, क्योंकि, इससे आपकी पहचान विकृत हो जाएगी। उदाहरणार्थ आपका जन्म किसी क्षत्रिय परिवार में हुआ है और आपका नाम श्प्रश् पर निकलता है तो आप अपना नाम प्रद्युम्नसिंह, पृथ्वीसिंह वगैरा कुछ भी रख सकते है परंतु यदि आपने प्रेमपाल शर्मा, प्रमोदशंकर रख दिया तो आपकी वंशानुगत पहचान विकृत हो जाएगी। प्रेमपाल शर्मा या प्रमोदशंकर नाम ब्राह्मण वर्ग के लिए ही शोभनीय हैं। यदि आपने प्रमोदमल नाम कर दिया तो यह नाम वैश्य वर्ग (बनियो) में चला जाएगा। क्षत्रियों के नाम बलवाचक जैसे तेजसिंह, ब्राह्मणों के नाम मंगल वाचक जैसे शिव शर्मा, वैश्य के नाम धनयुक्त जैसे धनवर्धन, धनराज, शूद्रों के नाम सेवा सूचक जैसे रामदास, देवदास वगैरा होना चाहिए इसलिए नाम के पीछे रखने वाले उपनाम का पूरा-पूरा ध्यान रखें ।
2. जहां तक हो सके नाम जन्म-नक्षत्र और उसके श्चरणश् के अनुसार ही रखें। यदि चरण विशेष पर सही नाम न मिले और यदि नक्षत्र के चारों चरणों में सही नाम न जंचे तो पूरी राशि में जो भी अक्षर उचित जंचे वही नाम रखें, पर राशि की सीमा को किसी कीमत पर न लांघे ।
हमारे पास हजारों की संख्या में ऐसे लोग परेशान होकर आते है जिनके जन्म नाम कुछ और तथा बोलता नाम कुछ और है? वह कहते हैं कि हम कौन-सी राशि देखें ? इसके लिए हमने इस पुस्तक में एक संपूर्ण अध्याय अलग से जोड़ा है। आपके संतान को आगे चलकर, यही तकलीफ दुःख न दे एवं सारे जीवन-जातक दो-तीन राशियों के चक्कर में उलझा न रहे ? अतः आप पहले से ही उसका नाम सही राशि पर ही रखें ताकि उसका सही विकास, उसके नैसर्गिक नक्षत्रों के अनुसार हो सके ।
3. जहां तक हो सके चुना गया नाम महापुरुषों तथा देवी-देवताओं एवं प्रेरक तत्त्वों के नाम पर ही रखें ।
4. बच्चे का नाम रंग-रूप, गुण एवं स्वभाव को देखकर भी रखें ।
5. एक ही कुटुम्ब में दो बच्चों का नाम एक समान न रखें ।
6. कुछ नाम ऐसे भी होते हैं जो स्त्री एवं पुरुष दोनों में समान रूप से चलते हैं जैसे मधु, कमल, कोमल, दया, सुमन, वगैरा। ऐसे नामों को चुनते समय लिंग का अवश्य ध्यान रखना चाहिए तथा नाम के दूसरे टुकड़े में वर्ग भेद स्पष्ट कर देना चाहिए। जैसे मधुदवे, मधुकुमारी, कोमलकांत, कोमल कुमारी, दया शंकर, दयावंती, सुमनप्रसाद, सुमन कुमारी, गुलाब सिंह, गुलाब कौर इत्यादि ।
7. ध्यान रखें अपने मनपसंद नाम के पीछे लगने वाला उपनाम, आपको अपने धर्म, जाति, पूर्वजों, वंश एवं व्यवसाय से जोड़ता है, अतः इसके चुनाव में विशेष सावधानी रखनी चाहिए।
8. आपको दुष्ट पात्रों एवं कर्ण-कटु नामों से बचना चाहिए, नाम ऐसा रखें जो कर्णप्रिय हो और सुनने में अच्छा लगे ।
9. नाम जहां तक हो सके छोटे-से-छोटा रखें। चाहे फैक्टरी का नाम हो या आपका, ताकि नाम लोगों के होठों पर आ सके और आप लोकप्रिय हो सकें। बड़े नामों को पुकारने में एवं लिखने में लोगों को कठिनाई होती है।
10. अंग्रेजियत से बचें- पाश्चात्य संस्कृति के चकाचौंध में लोग अपने नामों का संक्षिप्त प्रयोग करने लगे हैं, यह गलत है तथा आपके व्यक्तित्व को कचरा करने वाली परंपरा है। जैसे- चंद्रप्रकाश सी० पी० एवं प्रेमकुमार पी० के० बनकर रह गए हैं। अंग्रेजी में पिता को डेड मरा हुआ एवं मां को मम्मी मरी हुई मसाला भरी लाश कहते हैं।
मतलब यह कि अंग्रेजियत के भूत ने जिंदा मां-बाप को मुर्दे बना दिया है। वैसे डेड शब्द डैडी का लघु रूप है। इन दोनों शब्दों का प्रयोग आजकल बोलचाल की भाषा में सर्वाधिक होने लगा है। पिता को पापा भी कहने लगे हैं और इस शब्द को भी हमने अपना लिया है। मां-बाप, अब मम्मी-डैडी या मम्मी-पापा हो गए हैं। पिता जनक को कहते हैं, पिताजी, पिताश्री सम्मानसूचक शब्द है जबकि पापा का कोई अर्थ नहीं होता है। यह पापी का अपभ्रंश हो सकता है। अतः निरर्थक शब्दों के प्रयोग से बचें।
अंग्रेजियत का दूसरा करिश्मा यह है कि अब घर भर में कहीं भी बाथरूम (गुसलखाना) लैट्रीन (पाखाना) पैदा हो सकते हैं। बच्चा कहीं पेशाब कर दे तो वहां बाथरूम हो जाता है और जहां टट्टी कर दे वह लैट्रीन हो जाती है। बच्चा यदि दोनों क्रियाएं चड्डी में कर दे तो बाथ रूम और लैट्रीन उसकी चड्डी में समा जाते हैं।
अंग्रेजियत का तीसरा करिश्मा यह है कि ताऊ, चाचा, फूफा, मामा और मौसा सब अंकल कहे जाते हैं और ताई, चाची, बुआ और मौसी यह सब आंटी के नाम से संबोधित होती हैं। पिता के मिलने-जुलने वाले या मेहमान भी अंकल होते हैं और माता की सखियां आंटियां होती हैं। यह है अनेकता में एकता का चमत्कार। अंग्रेजियत के भूत ने सारे रिश्तों को गड्डु-मड्डु कर दिया है। बहनोई व साले साहब दोनो ब्रदर-इन-लॉ मासी व सासू के लिए मदर-इन-लॉ साली व भाभी के लिए सिस्टर-इन-लॉ का प्रयोग बढ़ गया है। हिंदू धर्म में साली को आधी घर वाली कहा गया है, क्यों कि पत्नी के गुजरने पर साली से विवाह हो सकता है पर भाभी मां के समान पूजनीया होती है। उनको सिस्टर-इन-लॉ कहना गाली देने के समान जघन्य अपराध है।
चौथा करिश्मा यह है कि इन शिक्षित वर्गों की पब्लिक स्कूलों में पढ़ने वाली औलाद संख्याओं और सप्ताह के दिनों के हिंदी नाम नहीं जानती। माता-पिता इसके बारे में कुछ नहीं सोचते क्योंकि अंग्रेजियत का भूत सवार है। वैसे तो हिंदी में अंग्रेजी भाषा के बहुत सारे शब्द तत्सम या तद्भव रूपों में प्रचलित हो गए हैं, जिन्हें हटाया नहीं जा सकता । इसके अलावा विज्ञान और टेक्नोलोजी के इस युग में नये-नये आविष्कार हो रहे हैं और नये-नये उपकरण बन रहे हैं, जिनके परिभाषिक नाम अंतर्राष्ट्रीय हैं। इसी प्रकार मशीनों और उनके कल-पुर्जों के भी अंग्रेजी नाम है।
घरेलू उपयोग की कई चीजों के नाम भी अंग्रेजी के हैं- जैसे फ्रिज, कूलर, टेलीफोन, बॉलपेन, वगैरा ।
लेकिन शहरी औरतों में अंग्रेजी के शब्दों का प्रचलन धड़ाके से हो रहा है। अब कलेवा, दोपहरी और ब्यालू भोजन नहीं होते- ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर होते हैं। दावतें खडियल होने लगी है, यानी हाथ में प्लेट लेकर खड़े-खड़े लोगों का जूठा खाना फैशन हो गया है।
कोट और पतलून तो पहले ही थे अब कुर्ते और कमीज, शर्ट हो गये हैं। कपड़ों पर इस्तरी नहीं की जाती। उन्हें प्रेस किया जाता है और ऊनी वस्त्रों को ड्राई-क्लीन कराया जाता है। घर में रसोई नहीं किचिन होती है। कमरों के नाम ड्राईंग रूम, लिविंग रूम, बैड रूम और स्टोर रूम होते चले जा रहे हैं।
पढ़ी-लिखी औरतों में एक फैशन खूब चल रहा है जिसे किटी पार्टी कहते हैं। यह पार्टी हर महीने बारी-बारी सदस्यों के घर पर होती है और हर बैठक में हरेक से एक निश्चित रकम ली जाती है जो 250/- से कम नहीं होती। इन पार्टियों में शामिल होने वाली स्त्रियां खूब सज-धज कर आती है और हर बार नई साड़ी पहन कर आती हैं। वैभव का प्रदर्शन इन पार्टियों का अंग होता है।
इस अंग्रेजियत ने हमारी सांस्कृतिक विरासतों पर कहर ढा दिया है। नाइट क्लबों और डिस्को में नौजवान लड़के और लड़कियां शराब के नशे में धुत होकर पॉप म्यूजिक के साथ गाते-नाचते हैं। टी० वी० पर प्रदर्शित होने वाली सैक्सी और मारधाड़ से भरी फिल्में बच्चों के दिमागों पर कैसा असर डाल रही है, इसकी किसी को चिंता नहीं। सरकार भी इन प्रवृत्तियों पर अंकुश लगाने की बजाय इन्हें बढ़ावा दे रही है। सैंसर बोर्ड बिलकुल नाकारा साबित हो रहे हैं।
इनके खिलाफ आवाज उठाने वालों को दकियानूसी और प्रतिगामी यानी प्रगति रोधक कहा जाता है। अखबार भी इस बहती गंगा में हाथ धो रहे हैं। फिल्मी सितारे हमारे नौनिहालों के आदर्श बन गए हैं। फिल्मी गीत व टी० वी० विज्ञापन बच्चे की जबान पर चढ़ गए हैं। कहां तक गिनाएं, अंग्रेजियत ने हमारे दैनिक जीवन को चारों ओर से घेर लिया है और हम इसके गुलाम बन गए हैं। हमारे रहन-सहन, खान-पान, बोलचाल वगैरा सब पर अंग्रेजियत का रंग चढ़ गया है। ध्यान रहे अंग्रेजी पब्लिक स्कूलों में बच्चों को पढ़ाना, उसे भारतीय संस्कृति-सभ्यता, रहन-सहन, खान-पान से दूर करना है।
बॉबी का मतलब है- संन्यासिन, जिप्सी का अर्थ बन्दर, रीटा का अर्थ उलटा पड़ा हुआ खाली घड़े से होता है। जानू का अर्थ जांघ, डम्मी का अर्थ खाली ढोल से होता है जैकी कुत्ते को कहते है, नाटी शैतान की औलाद एवं सैक्सी वैश्या को तथा क्रेजी पागल को कहते है। अतः नाम के अंग्रेजीकरण से दूर रहना ही श्रेष्ठ है। आप इन बीमारी से बचें।
11. स्त्रियों के नाम ऐसे रखने चाहिए जो बोलने में मृदु हों, जिसका अर्थ स्पष्ट व अच्छा हो, जिससे सुनने से मन प्रसन्न हो तथा जो मंगल सूचक एवं आशीर्वाद युक्त हो तथा जिसके अंत में अकार व ईकार दीर्घस्वर हों जैसे मंगला, प्रभा, यशोदा देवी, जानकी, गायत्री, लक्ष